आँधियों का ख़ौफ़ नहीं आसमाँ तले चराग़ जलाए बैठे हैं
घात लगाए कोई मुठ्ठी में अपनी तक़दीर लिए बैठे हैं
तन्हा सफ़र अब मुश्किल नहीं ठोकरों से हौसला मिल गया
वक्त पर कोई साथ नहीं देता सबको आज़माए बैठै हैं
ग़लत को सही, सही को ग़लत करने में वो मसरूफ़ थे बहुत
मैंने दिखाया जो आईना तो सर अपना झुकाए बैठै हैं
सारे चेहरे थे एक जैसे भला हम करते भी तो क्या
खाये थे धोखा जिससे उसी पर फिर भरोसा किए बैठे हैं