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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कांटो को तुम पुष्प बनाकर - बढ़ते जाना चलते जाना - अशोक कुमार पचौरी


है कठिन डगर सुन ले ओ पथिक
चलने से घबरा मत जाना
जाति - पाति के भेदभाव में
फंसकर कहीं तुम न रह जाना
कांटो को तुम पुष्प बनाकर
बढ़ते जाना चलते जाना
कहीं लगे थक गए बहुत हो
तनिक ये भाव न मन में लाना
कहीं दूर है मंजिल ओ राही
पुष्प देखकर मचल न जाना
पुष्प राह के नहीं हैं मंजिल
कांटो को तुम राह बनाना
जब तक थककर चूर न होना
उससे पहले मंजिल पाना
मंजिल क्या है पता तो है ना?
सबको साथ में लेकर चलना
भेद भाव को तज देना है
राष्ट्र भूमि की बात जो आये
शीश काट कर रख देना है
संघर्ष तुम्हारा समझ तुम्हारी
परिणामो को साझा करना
कहीं लगे की हार हुयी है
खुद को और प्रखर करना है
लगभग लगभग कुछ नहीं होता
जो होता है पूर्ण है होता
मानव जब कुछ प्रण करता है
सबकुछ सहज मुमकिन होता है
इसीलिए यह याद तुम रखना
है कठिन डगर सुन ले ओ पथिक
चलने से घबरा मत जाना
कांटो को तुम पुष्प बनाकर
बढ़ते जाना चलते जाना।

  • अशोक कुमार पचौरी
    (जिला एवं शहर अलीगढ से)






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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

वेदव्यास मिश्र said

बहुत ही गहरी बात कही है भाई साहब आपने पचौरी जी !! ऐ पथिक..काँटें ही असली रास्ते हैं..असली मंज़िलें हैं ..मंज़िल से आगे भी कोई मंज़िल है !! काँटों से लहुलुहान होकर रूकना ही नहीं है इस मंज़िल रूपी छोटे से पड़ाव में !! जो राह को फूल समझकर सो गया ..फिर तो वो अगले पड़ाश यानि अगली मंज़िल का आनन्द नहीं ले पातेगा !! क़ाबिले तारीफ 👌👌👌👌👌/ 👌👌👌👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपकी इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया ने भावविभोर कर दिया खुद को धन्य महसूस कर रहा हूँ कि एक साहित्य के धनी महानुभाव मेरी कविता से जुड़ पाए - कविता से ज्यादा सुन्दर आपके द्वारा प्रस्तुत किया गया भावार्थ है - सादर प्रणाम!!

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