एक खुशबू सी है रूह की गहराई में।
फैलना चाहती चारो तरफ परछाईं में।।
अँधेरे में रहना आ गया मेरी जान को।
मुझको खींच कर ले जाती परछाई में।।
मैं रोज मनाता उसको सुबह होने तक।
उसे ताकत मिलती 'उपदेश' परछाई में।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद