हर इंसान की कीमत हैं हर इंसान बिकता हैं
कोई पैसे प्यार मोहब्बत में कोई सरे राह बिकता है...!
मंडियां सजती है बाज़ार लगते हैं चौंक चौराहे भी
कोई खुशी खुशी तो किसी का मायूस चेहरा बिकता है...!
चिथड़ो से झांकती पसलियों पर बोली के दाम
कोई सूट बूट में सजकर किसी दफ्तर में बिकता है....!
चार आखर पढ़ लिए डिग्री के पुलिंदो के साथ
मजबूर बाप की बेटी के लिए वर रूप में गर्व से बिकता है...!
कौन है ऐसा जो परम आनंद को पाकर बैठा है
अब कहाँ सुदामा ,तीन मुठ्ठी तंदुल में त्रिलोकीनाथ बिकता है...!
चरित पतन अधोगति रसातल में उसकी दास्तां कितनी है
मां बाप बहन बेटी सब मिथ्या कलियुग है हर रिश्ता बिकता हैं...!
खुद की बोली हर रोज लगती है दाम मिले या खाली हाथ
बिकता हैं बिकता हैं यही सच हैं हर इंसान हर रोज बिकता हैं...!
मानसिंह सुथार©️®️