जब वो मेरे साथ साथ था जब तक,
खुशबुएँ भी साथ साथ थीं तब तक l
उस किताब के हर एक सफ़े पर था,
लफ़्ज़ जब तक पढ़ा नहीं तब तक l
शमा जलती रही जलती रही रातों में,
याद की महफिलें उठीं नहीं तब तक l
बेचैन बहुत था शहर की गलियों में ,
जब तलक घर नहीं पहुंचा तब तक l
मुझको तूफान से डर ना लगता था,
जब वो साहिल पे खड़ा था तब तक l
नदी की लहरों में शोख सी रवानी थी,
जब तलक घाट ना डूब जाए तबतक l
सच को इतना उजला कभी ना देखा था,
झूठ संग मिलकर चला नहीं तब तक l
रेत के दलदल हैं बस धुन्ध का बसेरा है,
चलो सो जाएं भोर ना हो जाए तब तक l