अनजानी राहों पर भटका
जहाँ तन्हाई खुद को ढूंढे,
सन्नाटे में धड़कनें
किसी और के आंसू गिनें।
वो ठौर जहाँ उम्मीद
साँस लेना भी भूल जाए,
जहाँ चुप्पी का बोझ
सितारों तक पहुंच जाए।
धुंधली सी आवाज़ें
अंतरिक्ष में खो जाएँ,
रातें इतनी गहरी
कि सुबह लौटने से डरे।
कभी किसी कोने में
काँपती हुई दुआ हो,
कभी नमी से भरी हवा
दिल को चीर जाए।
वहाँ कोई मुस्कान
सपनों के नीचे दब जाए,
और थकन भी इस तरह
खुद को ही सुला जाए।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
सर्वाधिकार अधीन है