फूल सबके लिए महकते हैं।
लोग लेकिन कहाँ समझते हैं।।
ज़िंदगी जी रहे हैं हम लेकिन।
बेहतर ज़िंदगी को हम तरसते हैं।।
वक़्त का एक नाम और भी है।
लोग मरहम भी इसको कहते हैं।।
रोज़ मिलते नहीं हैं हम ख़ुद से।
मगर रोज़ खुद से हम बिछड़ते हैं।।
फूल जैसे जो खिल नहीं पाते।
फूल की तरह वही बिखरते हैं।।
वक़्त में ख़ासियत है 'उपदेश'।
वक़्त के साथ सब बदलते हैं।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद