यहां सबके सपने
सबकी अपनी दुनियां है।
कोई किसी की नहीं
सुनता।
सबके अपनी राग
अपना हरमोनियम है।
यहां सरकार ना जनता की सुनती
ना जनता सरकार की।
ना गांव प्रधान की
तो ना प्रधान गांव की।
यहां ना बेटा बाप की तो
ना बाप बेटे की।
ना पति पत्नी की
ना पत्नी पति की।
ना भाई भाई की
ना भाई उसकी लुगाई की।
ना शासन प्रशासन की
ना प्रशासन शासन की।
ना मां बाप बच्चों की
ना मां बाप की बच्चे
लगते फिरभी एकदूसरे
को अच्छे...
सब फिरभू जिए जा रहें हैं।
एक दूसरे की कड़वी घूंट
पिए जा रहें हैं।
पीठ पीछे सब करतें
एकदूसे की बुराई हैं।
है यह दुनियां ऐसी हीं
और यही इसकी सच्चाई है..
दुनियां की यही सच्चाई है..