जो बीत गया, वो सपना था,
हर ग़म बस एक अपना था।
जो लहर किनारे छोड़ गई,
वो रेत का घरौंदा था।
अब क्यों पछताना उसको,
जो हाथों से फिसल गया,
जो पाया नहीं मुकद्दर में,
वो तेरे लिए बदल गया।
जो छूट गया, वो भार न था,
बस एक परछाईं थी,
जो रूठ गया, वो प्यार न था,
बस पल भर की रुसवाई थी।
बीती राहों को मत देखो,
आगे सूरज जलता है,
हर अंधियारी रात के आगे,
सपनों का दीपक पलता है।
पछतावे की बेड़ियाँ तोड़ो,
उड़ो खुले आसमान में,
क्यों उलझे हो बीते पलों में,
नए सफर की पहचान में।
जो गया, उसे विदा करो,
नए पथ पर मुस्काओ,
जो समय ने छीन लिया,
उसे भूल आगे, बढ़ जाओ।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




