झिलमिलाते तारों की झिलमिलाती रात
भीगी पलकें मेरी प्रभु करती तेरा आभार
मृदु तरंग प्रथम उमंग, मधु मंथर वात
छू कर निकल गई हास लहर चुपचाप।
परिचय पीर का क्या देती निशिदिन निशि
छट जाता दुःख घनेरा प्रात जब हंस देती।
विस्तृत संसार में इतिहास रह गया इतना
सघन तम ने पांव पसारा जग हुआ सपना।
शून्य शीत शरद बन गए प्रत्येक भाव
स्नात उजली चांदनी ने भर दिए घाव।
विशाल विषाद धुला, हुई छाया विलुप्त
संवेदनशील मौन को कर गया कोई मुक्त?
हिमकण बन गिरी अश्रु अमोल अमिय
मिट चली वेदना लगने लगा सब प्रिय।
भ्रम विभ्रम से छूटा प्राण, हुआ एकाकार
उड़ चली आत्मा अमर, क्षितिज जग पार।
_ वंदना अग्रवाल "निराली "

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




