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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

दिल के अल्फ़ाज

पुकारते किसे हो ?
कौन है जिन्हें तुम अपना समझते हो?
हमनें सुना है
जरूरत पड़ने पर लोग पहचानते नहीं हैं
फिर तुम पुकारते किसे हो ?
कौन हैं ??जो तुम्हें अपना कहते हैं
हमने तो सुना है
आजकल अपने अपनों को भी पहचानते नहीं हैं
वन्दना सूद


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सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

उपदेश कुमार शाक्यावार said

सामाजिक तानाबाना का बेह्तरीन चित्रण

वन्दना सूद replied

🙏🙏

इक़बाल सिंह “राशा“ said

बहुत खूब वन्दना जी
यह जीवन की ऐसी सच्चाई है जो हर किसी को समझ तो आती है पर उम्र का बहुत बड़ा हिस्सा निकल जाने के बाद इसलिए क्योँ न पुकारा उसे जाए पहचाना उसे जाए जो अंत में हमें पहचान कर अपनी गोद में समा ले

वन्दना सूद replied

बहुत खूब कहा आपने sir
आज की सच्चाई यह भी है कि अंत आते आते भी अहम् नहीं जाता सबका अगर अंत में ही सही हम तो पुकारने का इंतज़ार करते रहेंगे

Tulsi patel said

बिल्कुल सही बात कही आपने दीदी 🙏🏻

वन्दना सूद replied

🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह! सामाजिक परिवेश की कड़वी सच्चाई को आपने खूबसूरत फटकारा है।आज अपनों के बीच अपने कौन है, बेचारा " अपनापन" तो यूं ही मौन है।🌹🌹🙏

वन्दना सूद replied

सही कहा आपने
अपनापन बेचारा तो यूँ ही मौन है 😊

सुभाष कुमार यादव said

सच कहा आपने।
आजकल अपने अपनों को भी पहचानते नहीं हैं..👌👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏

ललित दाधीच said

खूबसूरत 👌👌

वन्दना सूद replied

🙏🙏

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