मैंने तुम्हें
कहाँ कहाँ नहीं खोजा
प्रभु!
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे
मठ मजार तीर्थ
हजारों धार्मिक ग्रंथो
संतो गुरुओं फकीरों में
अनुष्ठानों उत्सवों
आहार निराहार
साकार निराकार
पृथ्वी आकाश
बायु अग्नि
नियम संयम
योग वियोग
भजन कीर्तन
गीत संगीत
तप जप
फूल माला
रात दिन
हर जगह
सिर्फ तुम्हारा
एक नया नाम था
लेकिन तुम कहीं नहीं
तुम्हारा कोई पता नहीं
मैं निराश
बदहवास
थक चुका था
तब अचानक
मेरा हाथ
अपने ही दिल पर पड़ा
वहां निरंतर धड़कन थी
और रूह में कहीं कसक
और तड़पन थी
यह कौन है जो
इन्हें चलाता है ?
मुझे सक्षम
बनाता है?
ओह यही तो
मेरा प्रभु है
जो हमेशा
मेरे साथ है
मेरा प्राण है
दिल की धड़कन
रूह की तड़पन
साँसो के नियमन
का वही तो
आधार है
बाकी
सब निराधार है I