हल्की बारिश में कबाड़ियो को जुकाम बहुत है।
सड़के चौड़ी कम लगती इन पर जाम बहुत है।।
नही दिख रहे बूढे अब जवान सम्भाले कबाड़।
फुर्र हो गई फ़ुरसत सब के पास काम बहुत है।।
खोज बहाना लग जाते तोड़ फोड़ में घबराकर।
उजाड़ रहे जो सामने आता जिनका नाम बहुत है।।
कहीं चाय कहीं पर पानी 'उपदेश' बड़े धार्मिक।
फ्री का खाना चाहत उनकी देता आराम बहुत है।।
अकड़ अनूठी ऐंठ निराली मन्नत मतलब वाली।
सहयोग मिल रहा सत्ता से उनके पैगाम बहुत है।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद