अश्रु और बोल
क्या रीत चली है जगत में आज
महँगाई की गूँज उठी है अपार
भावनाएँ मूल्यवान हो गईं
नहीं मन को भाती अब आसानी से
अन्न सबसे है बहुमूल्य
कहाँ है सबकी थाली में
शिक्षा की प्रीत है सबको
क्या अधिकार मिल पाता है सभी को
कपड़े की तो बात न पूछो
नहीं है सबकी झोली में
क्या बचा है सस्ता,अब जीवन में ये सोचो..
एक अश्रु ही हैं सस्ते,सबकी आँखों के
जो छलकते रहते हैं सबकी पलकों से
हर आँख है आज भीगी
कोई रोटी,कपड़ा,छत के लिए
कोई धोखे में भीगी
कोई बच्चों के लिए
तो कोई बच्चों की वजह से भीगी
सही कहा न
अश्रु कितने सस्ते हो गए बिन मोल ही बहाए जाते हैं ..
दूजे सस्ते हो गए बोल हमारे
गहराई उनमें कितनी बची यह बात न पूछो
न ठहराव है अब बातों में
न मिठास बची है लफ्जों में
आदर की सीमा सब है लाँगी
बुरे बोल में मर्यादा सब छोड़ी
अच्छे बोल में कमी रह गई शब्दों की
क्यों झूठ कहा कुछ
बहुमूल्य कितने थे यह शब्द हमारे,अब यूँ ही गंवाए जाते हैं..
-वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




