खुशबू सी ज़िंदगी बहती जाए,
हर मोड़ पे हँसी बिखरती जाए।
चाय की प्याली, सुबह की धूप,
छोटे-छोटे लम्हों का अनोखा रूप।
बच्चों की हँसी, बुज़ुर्गों की दुआ,
इनसे ही सजती है जीवन की राह।
कभी छत पर तारों को ताको,
कभी बिन वजह ज़ोर से हँस लो।
संगीत सुनो, कुछ गुनगुनाओ,
भीड़ में भी खुद से मिल आओ।
कागज़ पे सपने उकेर के देखो,
रंगों से दिल को संवार के देखो।
बारिश की बूँदें जब गाल छुएं,
मन की थकन भी दूर हुई जाए।
दोस्ती में जब ना हो कोई शक,
हर बात लगे जैसे कोई फ़लक।
खाली जेब हो, पर दिल भरा रहे,
ऐसी दौलत में ही सुकून पला रहे।
हर दिन को जैसे आख़िरी जानो,
पर हर सुबह नई कहानी मानो।
थोड़ा बिखरो, थोड़ा सँवर जाओ,
ज़िंदगी को खुलकर जी जाओ।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




