धर्म को पी रहे शराब की तरह।
सुध-बुध खोई आस्था की तरह।।
फर्ज पर वकालत जिनकी अधूरी।
जिस्म पानी के बुलबुले की तरह।।
वर्तमान के साथ भविष्य दाँव पर।
गिरते कड़कती बिज़ली की तरह।।
उनका शौक ही ऐब बना 'उपदेश'।
जिन्दगी बनाई जानवर की तरह।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद