मैंने पत्थर को पिघलते देखा है,
जिस्म से, जाँ निकलते देखा है।
जो कहती, मैं बदल नहीं सकती,
उसको भी मैंने, बदलते देखा है।
बड़ा ऐतबार था उसकी बातों पर,
खुद को, खुद से, छलते देखा है।
कसम थी हर कदम साथ चलेंगे,
उसे गैर के साथ चलते देखा है।
हुस्न-ए-शबाब के, इस गरूर को,
शाम-ए-ज़िंदगी में ढलते देखा है।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




