कुछ लोग
इतने खोखले होते हैं
कि उन्हें कुछ देना
अपने भीतर से कुछ खो देना होता है।
वे प्रेम को पिघालते नहीं,
उसे घिसते हैं—
जैसे रबर से मिटा रहे हों
किसी और की कविता।
वे भावनाएँ नहीं समझते,
वे शब्दों की लाशों पर चलते हैं,
और जब आप टूटते हैं—
तो वो आपको “नाटक” कहते हैं।
उन्हें कुछ नहीं मिलना चाहिए।
न कोई उत्तर,
न कोई द्वार,
न एक चुप्पी भी।
क्योंकि हर बार जब आप उन्हें
“एक और मौका” देते हैं—
वे उसे
आपके आत्मसम्मान की छीलन बना देते हैं।
कुछ लोग सिर्फ़
शून्य के योग्य होते हैं—
न ध्यान,
न नफ़रत,
न प्रेम,
न बदला।
बस
उपेक्षा।
ठंडी, तटस्थ, स्थिर उपेक्षा।
जैसे वे कभी थे ही नहीं।