मैं वो दरख़्त, जिसकी पनाह में सब पलने लगे,
मैं सूखने क्या लगा, साथ छोड़ सब चलने लगे।
हरा-भरा था तो थी चहलपहल हर एक डाल पर,
कल तक जो साथी थे आज वो सब छलने लगे।
जब था सायेदार, तो थे चारों ओर लोग ही लोग,
आज है मुझे उनकी जरूरत पर सब भूलने लगे।
यही दस्तूर दुनिया का, उरूज में होते सब साथ,
वक़्त क्या बदला, मेरे यार भी सब बदलने लगे।
ये वक़्त भी बदल जाएगा, दुःख से सुख आएगा,
यही सोच कर जमा रहा, नये पत्ते निकलने लगे।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




