गैर नही मगर गैर बना लिया खुद को।
मोहब्बत के बाद जला लिया खुद को।।
साया नही थी मगर साया से कम नहीं।
दूरी के बादलों मे छुपा लिया खुद को।।
उसके ख्वाब से बना दिखता ख्वाब मेरा।
जाने क्या बात भिड़ी हटा लिया खुद को।।
चाहतों की गली में साथ साथ चले थे हम।
लालच 'उपदेश' टकराई मिटा लिया खुद को।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद