बदली को बुलाते हैं पौधे,
पौधों के हैं दुश्मन हम सारे !!
हैं अपने अजब हालात मगर,
हम दोस्त नहीं है समझते कभी !!
क्या अपने लिए वो बरसती नहीं,
हमसे मिलने वो तरसती नहीं !!
बरसें भी तो बरसें वो कैसे,
दुश्मन हैं हम पशु-पक्षी के !!
मतलबी हैं हम इस धरती में,
हम शत्रु हैं पूरे सिस्टम के !!
जब पौधा लगाया है ना कभी,
क्या काटते शर्म नहीं आती !!
ग़र पेड़ जो ऐसे ही कटते रहे,
फिर बदली कभी न आयेगी !!
ज़रा सोचो और विचार करो,
क्या खुद से ही जी पायेंगे हम !!
क्या ऐसे ही कटने देंगे हम,
क्या कदम उठायेंगे ना कभी !!
इक पौधा लगायेंगे इस बार,
हम दोस्त बनेंगे ज़रूर इस बार !!
सर्वाधिकार अधीन है