साइकिल से साइकिल तक का सफ़र
साइकिल से टू वीलर पर आए
टू वीलर से कार तक आए
सहूलियतें बढ़ती चली गईं
सब शौक़ खत्म होते गए
और हम अपनी तरक्की पर यूँ ही नाज़ करते रहे..
क्या खो दिया हमने आज समझ आया
जब साइकिल चलाने का शौक फिर मन ने जगाया
जिम्मेदारियों से थोड़े से फुरसत के पल चुराए
निकल पड़े सुबह की गुलाबी ठण्ड का आनन्द लेने
और अब क्या कहें,हम तो यूँ ही अपनी तरक्की पर नाज़ करते रहे ..
ज़िन्दगी कितनी भी ऊँचाई पर ले जाए
जितनी भी सुविधाओं में बाँध दे
आनन्द तो बचपन के पलों में ही था
घर के आँगन में पड़ी गाड़ियों के बावज़ूद भी आज मज़ा तो साइकिल पर घूमने का ही आया
और हम बेवजह ही अपनी तरक्की पर यूँ ही नाज़ करते रहे ..
वन्दना सूद