बेवजह दूर कर लिया खुद को उजालों से।
अँधेरा न बता पाया कौन खेलेगा गालों से।।
ग़म एक उम्र तक चलता होगा तुम्हारे पीछे।
टकरा तक नही पाया कोई निभाने वालों से।।
ज़माना कर गया रुसवा तुझे और मुझे भी।
पर याद ने पीछा नही छोड़ा गुज़रे सालो से।।
तन्हाई का अपना मजा मोहब्बत के दौर में।
तकलीफ कौन देखता पाँव को प्यार छालों से।।
उनकी आँखों को करार आता मुझे देखकर।
यहाँ कौन बच पाया 'उपदेश' चाहने वालों से।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद