जब भी गांव जाता हूं,
गांव की गलियां,सड़के,खेत बागान,
अपने से दूर जाने नहीं देती।
घर की हालत पिता का कर्ज,
रात को सोने नही देती।
एक आवाज सी आती है,
उठ,चल और करके दिखा,
ना सोना है,ना खाना है,
बस तुम्हे लड़ना है,
तू भीरू,नही वीर है।
अपने लहू की गर्मी से,
लिख एक नया फरमान,
साफल्य तेरे पग-पग चले,
रच एक ऐसा इतिहास।
तू भीरू नही,वीर है।
पिता का अरमान है,
देश का भविष्य है,
कुछ करने कुछ बनने,
आया शहर में तू,
लेकर एक पैगाम है।
तू भीरू नही,वीर है।
जब जब हारा,खुद से मैं।
लौट आया गांव को,
फिर देखा घर की स्थिति,पिता का दर्द।
तब लौट आया मैदान में,
और रच दिया इतिहास मैं,
ऐसा एक स्वाभिमानी हूं।
मैं भीरू नहीं वीर हूं।।2
🙏जय युवा,जय जवान!♥️
✍️@S.KABIRA


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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