काली छाया में डूबा है,
देश हमारा प्यारा।
भ्रष्टाचार की ज्वाला में,
जल रहा है, संसार सारा।
लालच की अग्नि में जलते हैं,
अधिकारों के धनी, जनता के हक़ छीनते हैं। बनकर निर्दयी।
रिश्वत का दलदल गहरा है,
जिसमें फंसे हैं, सभी,
न्याय की धुंधली है, आस।
दूर है न्याय या पास।