कापीराइट गजल
बेवफा निकलती है
मैं क्या जानूं दर्दे दिल की दवा कहां मिलती है
मैंने इश्क किया जिससे वो बेवफा निकलती है
तुम कर लो कितने भी सितम इस दिल पे मेरे
तेरी हर चोट से, इस दिल से आह निकलती है
मैं, जिन्दा रहूं न रहूं, अय महबूब सितम से तेरे
मगर फिर भी ये जां मेरी कहां ऐसे निकलती है
तू कहे तो मैं खुद ही सौंप दूं ये जां तेरे हाथों में
न चाहते हुए भी मेरे दिल से, दुआ निकलती है
जो गिरा ही दिया तूने मुझे अपनी इन निगाहों से
इन नासाज निगाहों से हया कहां निकलती है
जान ले लो मेरी यादव गर तुम प्यार करते नहीं
जब टूट जाता है यह दिल दवा कहां मिलती है
सर्वाधिकार अधीन है