बाबुल के घर आंगन की रौनक ये बेटियां
कर देती है पूरे परिवार को गुलज़ार ये बेटियां .. फिरभी..
जन्म से लेकर पढ़ाई लिखाई व्याह तक
ना जाने क्या क्या सहती है बेटियां।
कभी अपनों की तो कभी गैरों की भेंट
चढ़ जाती ये बेटियां ।
घर से बाहर कदम रखते हीं सहम जाती
है बेटियां
कितनी अवसाद परित्याग दर्द झेलती बेटियां
ये हो क्या गया है लोगों को
बड़े बड़े विद्वान् विचारधारों को
आंखों के इनकी पानी मर गया है।
काल सबके कपाल पे छा गया है।
आज़ादी के 78 वर्षों बाद भी
बेटियों का वही हाल है।
वहशी दरिंदों की वजह से जल रहा
समाज है।
बेटियों के साथ हाय तौबा ये हो क्या रहा
आज़ है।
घर हो नुक्कड़ चौक चौराहों ऑफिस
बाजारों ये कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
क्या हाल बना रक्खा है देवियों के इस देश में देवियों का।
कभी घरेलू हिंसा तो कभी दहेज़ की भेंट चढ़ जाती हैं।
बेटियां खुशियां है
बेटियां सबकुछ है।
इसलिए बेटियों का सम्मान करना हीं
पड़ेगा।
किया जो पाप तो प्रायश्चित करना
पड़ेगा।
सबकी जवाबदेही तय करनी पड़ेगी।
बन के निगहबान बेटियों की
बेटियों की हिफाज़त करनी पड़ेगी।
बेटियों की हिफाज़त करनी पड़ेगी..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




