बेशुमार आफतों से खुद ही लड़ते रहे हैं
चुपचाप रहके भी आगे हम बढ़ते रहे हैं
जिन्दगी पे किस्मत की है मार चौतरफ़ा
आंधी और तूफ़ाँ में भी हम चलते रहे हैं
अंधेरा घना छाया रहा वीरान सभी राहें
दिले शमा रोशनी को हम जलाते रहे हैं
दास जब हमदम नहीं दोस्त दुश्मन नहीं
तन्हाई भरे सफर में हम फिसलते रहे हैं
कहने को कुछ नही सिर्फ सुनना बाकी
कभी हँसते कभी रोते हम लिखते रहे हैं