सरकारी दफ्तर में तारीख तीन को प्राइवेट जालसाजी प्रकरण की घसीटाराम हलवाई कर रहे थे सुनवाई
लड्डू थे चार , जालसाज थे तीन
नाच रही नागिन, सपेरा बजा रहा बीन।
सुनवाई के दौरान,
वर्षों की अधिपकी खिचड़ी ,
थी पकाई जा रही।
पुख्ता लकड़ियों की जगह,
खाली ताली बजाई जा रही।
झूठे दे रहे दलील,
गायब रिकॉर्ड की दवाई दी जा रही।
मामला था चंद रसीदों का,
बंदर बाट हुआ जिन रूपयों का।
उठ रहा था धुआं,
उन घपलों एवं षडयंत्रों का।
घसीटा राम घसीट रहे,
बगल में बैठे सी ए से पूछ रहे।
क्यूं भाई ये माजरा क्या है।
बोरे में रखा बाजारा क्या है।
हजूर सब आप ही का है,
न्याय कीजिए।
कुछ आप रख लीजिए,
कुछ हमें दीजिए।
झूठ बोल रहे हैं हजूर,
ईमानदारी बरती गई है।
जो रखते हैं हमारा ख्याल,
उनको मंजूरी दी गई है।