ज़िंदगी के रहगुज़र पर कैसे-कैसे बे-फ़िकर मिलते हैं
किसी को दर्द दे कर भी नहीं कोई फ़िकर करते हैं
किसी के मन में क्या है कोई जाने भी तो कैसे
फ़ितरत के अपनी पेंच-व-ख़म छुपाने का वो हुनर रखते हैं
वास्ता न हो ज़िस्म से जिसे बात हो सिर्फ़ रुह से रूह की
आजकल इस ज़माने में ऐसे कहाँ दिलबर मिलते हैं