सौंप दिया इस जीवन का भार, तुम्हारे ही हाथों में,
अब बाकी कुछ शेष नहीं, न शंका मन के पातों में।
नयन झुके हैं मौन प्रार्थना बनकर इस अज्ञात तले,
तू ही लिखे अब शेष कथा — तू जो कहे, वो सत्य चले।
मैं थक चुका प्रश्नों से अब, उत्तर तुझमें गहरे हैं,
मन की मिट्टी तुझमें गल के, बन जाए वो पहरे हैं।
चाहा तुझको फूलों से भी, कांटों से भी पुकारा है,
अब तो जलकर राख बना, खुद को तुझमें ही सँवारा है।
जीत मिले तो क्या होगा? हार से क्या मिट जाएगा?
तेरी कृपा का एक अश्रु, सब पथ को स्वर्ण बना जाएगा।
तेरे चरणों में जो गिरा, वो फिर कहीं गिरा ही नहीं,
जो तुझमें मिटकर जी गया, वो मृत्यु से डरा ही नहीं।
मैं अब वाणी नहीं रहा, केवल तेरा स्वर बन जाऊँ,
तू लिखे जो, वही कहूँ मैं — मैं बस तेरा घर बन जाऊँ।
तू चाहे तो दहका दे मुझको, तपते अग्निपर्वत पर,
या चाहे तो बिठा दे मुझको, शांत किसी निर्झर सर पर।
मैं अब माँग नहीं करता, बस इतना अधिकार रहे
जब भी साँस चले मेरी, तेरा ही सत्कार रहे।
और अंत में जब श्वास रुके — वो रुकना भी तेरा हो,
मृत्यु अगर सच्चाई है — तो वो मिलन सवेरा हो।
— शारदा गुप्ता

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




