प्यार इतना कि याद आते ही झरने लगती।
तरी से लेकर शीर्ष की तरफ चढने लगती।।
एक चादर सी किसी ने डाल दी आँखो पर।
धुँध अँधेरे को चीर कर रात्रि बढने लगती।।
एक चिन्गारी सी बन गये हो तुम 'उपदेश'।
बिना तेल के ही पूरी तरह से जलने लगती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद