बजट दर बजट
बजट बिगड़ रहा है।
आम आदमी को
क्या मिल रहा है।
बजट से पहले
झूठी उम्मीदें
और बजट के बाद
टूटी उम्मीदें।
सरकार का फोकस
रेबड़ियों में ज्यादा ।
स्थाई समाधान में आधा।
युवाओं के इस देश में
युवाओं के हालात ज्यादा
ख़राब है।
रोटी महंगी
सस्ती शराब है।
सबसे ज्यादा खस्ता हाल में
तो मिडिल क्लास है ।
मोटी मोटी डिग्रियां में बस
उलझा परिवार है ।
बाबूजी ने सारी कमाई
फीस भरने में लगा दी।
बदले में बेटा जी ने
सार्टिफिकेट ए बेरोजगारी
थमा दी।
सौ पैसा सरकार देती तो
तिरसठ पैसा किसी न किसी
मद में चाहे डायरेक्ट हो या
इंडिरेक्ट टैक्स के रूप में
वापस ले लेती।
फिरभी कहती खज़ाना खाली है।
क्या होगा उस बाग का जिसको
उजड़ने वाला ख़ुद माली है।
कुछ तो करो सरकार की
तेरे दरबार में खड़ी जनता सवाली है।
फ्यूचर का पता नहीं
अब तो पेंशन की भी ना रखवाली है।
सिर्फ लोक लुभावन वादें हैं ।
और जनता की फरियादें हैं।
ना पक्ष को ना विपक्ष को
किसी को देश की ना फिकर है।
राजनीति की महफ़िल में
सबको सिर्फ़ अपनी हीं जिकर है ।
जनता के हालात सवालात
वहीं के वहीं बस...
साल दर साल बढ़ रहा है।
बजट दर बजट
आम आदमी का बजट बिगड़
रहा है।
आम आदमी को सिर्फ़
साबुन का झाग मिल रहा है।
बजट दर बजट
बजट बिगड़ रहा है....
बजट दर बजट
बजट बिगड़ रहा है.....

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




