है ये खेल नसीबों का
हाथों के चंद लकीरों का।
किसी को कब क्या मिलेगा
किससे मिलेगा या नहीं भी
ये सभी मुकद्दर की बातें हैं।
बाकि सब यूहीं आती जाती
बातें हैं।
सीमाओं में नहीं बांध सकते
नसीबों के मायने बाहर निकल
हीं आते हैं।
और बज़्म में काम आ हीं जातें हैं।
दर बदर शामों शहर भटकने से
क्या होगा।
होगा वही जो तक़दीर में उस ऊपर वाले ने
लिख दिया होगा।
मिलना बिछड़ना ये सब किस्मत की
बातें हैं।
वरना जीवन के भीड़ में लाखों दिल
मिलते बिछड़तें रहतें हैं।
जिन्हें मिलना होता है वो महफ़िल में
आ हीं जातें हैं।
बाकि सब धीरे धीरे खो जाते हैं..
बाकि सब धीरे धीरे खो जाते हैं..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




