ये इस बार की इनायत है तुम्हारी या बरसों का कारोबार है कोई,
हर ठुकराए हुए को यहां मिलती है पनाह,
ये खानाबदोशों का घर है या दरबार है कोई,
मैंने देखा है यहां से कोई ना गया लौटकर खाली हाथ,
जरा बताओ ये दिल है तुम्हारा या बाजार है कोई...!
#कमलकांत घिरी ✍️