आ जाओ फिर से हम शुरू करें ग़ज़ल गीत
जाने क्यूंँ रूठ गया है हमारे होंठों से संगीत
ये रात सारे साज़ तुम्हारे बिन सब है ग़मगीन
तन्हा मुझसे भी सुर कोई सजता नहीं सुप्रीत
क्या करूं की झिलमिल हो रात और झंकृत साज़
क्योंकि मैं भी हूँ बेज़ार तुम बिन ओ मेरे मीत
न जाने कैसे दूर हो गए हम रागों और तरानों से
ऐसा लगता है अब ये सब हो गए हमारे अतीत
तुमको तुम्हारी चाँदनी की कसम आ भी जाओ
इस बार न हारेंगे बाज़ी प्यार की होगी हमारी जीत