सब कुछ खो दिया, अब क्या खोने वाले हैं,
हालातों से घबरा कर हम कहाँ रोने वाले हैं।
मखमल सा गद्दा हमारे नसीब में कहाँ था,
हम तो बस खाली चारपाई पे सोने वाले हैं।
हमारे पास कहाँ, हर दिन के लिए नई शर्ट,
सुबह पहना, शाम उसको फिर धोने वाले हैं।
थका-हारा, सोते ही चारपाई पे मर जाता हूँ,
हम जागती आँखों में सपने सँजोने वाले हैं।
आज के समझदार लोग, खेलते हैं, दिल से,
हम नासमझ तो मिट्टी के खिलौने वाले हैं।
बदमाश, बदमाशियाँ, हमसे सीखा करते थे,
शराफत छोड़ अब कहाँ बदमाश होने वाले हैं।
जिस दिन से ख्वाहिशों का गला घोंट दिया,
तब से अपनी लाश अपने कंधे ढोने वाले हैं।
🖊️सुभाष कुमार यादव


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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