छत पर टहल तारों को देख मैं गुनगुनाना रही थी
लगा तुम्हारी भी आवाज़ सुर में सुर मिला रही थी
किसी ने आकर पूछा खोई हो किसके ख़्यालों में
नाम तुम्हारा लब पर आकर रह गया शर्म आ रही थी
उस रोज़ हम-तुम मिलकर भी मिल न पाए थे
काली घटा देख हमें लगा बारिश आ रही थी
कैफ़े में छूटा रूमाल तुम्हारा छुपाया था मैंने हीं
आ कर घर खोला पर्स तुम्हारी ख़ुशबू आ रही थी