एक कवि महोदय की ढेर सारी,
रचनायें पढ़कर जी घबराया !!
मैंने पूछा ..आपकी रचनाओं में,
क्यों दिखती है..कहीं राहत इन्दौरी,
तो कहीं किसी और की छाया !!
माफ कीजियेगा..मौलिकता कम,
और काॅपी-पेस्ट की ..
दिखती है कुछ ज्यादा ही माया !!
वो मंद-मंद मुस्कुराये.. मेरे पास आये,
और बहुत से राज़ की बातें बताये !!
वो बोले..जब आपने
खोल ही दिया है पोल मेरी !!
तो सुन ही लीजिए !!
आप बेवजह मौलिकता के
चक्कर में सर खपाते हैं !!
तब तक तो हम ढेर सारी,
कवितायें चिपका जाते हैं !!
मैंने पूछा-
भला वो कैसे ??
उन्होंने कहा- सुनो ऐसे !!
ज़माना मिलावट का है
भाई साहब,
किसी शायर की पूँछ ले लेता हूँ,
तो किसी की टाँग ले लेता हूँ !!
कहीं से कुछ उठा लेता हूँ,
तो कहीं से कुछ चुरा लेता हूँ !!
और क्या...
बन गई एक नई रचना !!
मैंने पूछा हैरान और परेशान होकर..
ऐसा करके आपको आखिर मिलता क्या है !!
उन्होंने बड़े ही मासूमियत से कहा-
मज़ा और क्या !! 😍😍
मैं कुछ और पूछता,
उसके पहले ही वो खिसक लिए !!
सुना है..
आजकल वे हर मेहफ़िलों के शान हुआ करते हैं !!
पीने-पिलाने वालों के वे जान हुआ करते हैं !!
पीने-पिलाने वालों के वे जान हुआ करते हैं !!
सर्वाधिकार अधीन है