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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

और क्या..बन गई एक नई रचना- हास्य😁कविता- वेदव्यास मिश्र

एक कवि महोदय की ढेर सारी,
रचनायें पढ़कर जी घबराया !!

मैंने पूछा ..आपकी रचनाओं में,
क्यों दिखती है..कहीं राहत इन्दौरी,
तो कहीं किसी और की छाया !!

माफ कीजियेगा..मौलिकता कम,
और काॅपी-पेस्ट की ..
दिखती है कुछ ज्यादा ही माया !!

वो मंद-मंद मुस्कुराये.. मेरे पास आये,
और बहुत से राज़ की बातें बताये !!

वो बोले..जब आपने
खोल ही दिया है पोल मेरी !!
तो सुन ही लीजिए !!

आप बेवजह मौलिकता के
चक्कर में सर खपाते हैं !!
तब तक तो हम ढेर सारी,
कवितायें चिपका जाते हैं !!

मैंने पूछा-
भला वो कैसे ??

उन्होंने कहा- सुनो ऐसे !!

ज़माना मिलावट का है
भाई साहब,

किसी शायर की पूँछ ले लेता हूँ,
तो किसी की टाँग ले लेता हूँ !!
कहीं से कुछ उठा लेता हूँ,
तो कहीं से कुछ चुरा लेता हूँ !!

और क्या...
बन गई एक नई रचना !!

मैंने पूछा हैरान और परेशान होकर..

ऐसा करके आपको आखिर मिलता क्या है !!

उन्होंने बड़े ही मासूमियत से कहा-
मज़ा और क्या !! 😍😍

मैं कुछ और पूछता,
उसके पहले ही वो खिसक लिए !!

सुना है..
आजकल वे हर मेहफ़िलों के शान हुआ करते हैं !!

पीने-पिलाने वालों के वे जान हुआ करते हैं !!
पीने-पिलाने वालों के वे जान हुआ करते हैं !!


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (13)

+

Vineet Garg said

Bahut sundar kavi mahoday hasya se purn rachna

वेदव्यास मिश्र said

Vineet Garg जी, आपके इस अनमोल समीक्षा के लिए खुले हृदय से आभार बन्धु विनीत जी !!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत खूब आचार्य जी क्या कहने हैं प्रणाम स्वीकार करें 🙏🙏 और उन कवि महोदय से मुलाकात करवाएं हमें भी थोड़ा बहुत टूशन दिलवाएं हम भी चिपकाएंगे ऐसी वैसी कवितायेँ और उनकी ही तरह शामिल होना चाहेंगे महफिलों में

रीना कुमारी प्रजापत said

बहुत बढ़िया लिखा आपने, पर किसी की रचना को चुराकर छाने वाला वाला व्यक्ति खुलकर उतनी खुशी से नहीं जी पाता है जितना की एक मौलिक कवि जीता है भले ही वो रचना चुराकर खुश है पर कभी ना कभी तो उसके मन में ये चुभता ही है कि ये मेरी अपनी नहीं है वो चुराई हुई उन रचनाओं से काल्पनिक ज़िंदगी जीता है वो उसकी हक़ीक़त की ज़िंदगी या खुशियां नहीं होती है। ऐसा नहीं करना चाहिए किसी को भी...

फ़िज़ा said

Bahut sundar rachna hasya se Hari bhari..baki vyang bhi hai jo bahut achha laga.

वेदव्यास मिश्र said

फ़िज़ा जी, पुलकित एवं आनन्दित हृदय से आभार आदाब !! दुर्भाग्य है, आजकल बहुत से लोग ऐसा ही कर रहे हैं !! लेकिन मौलिक रचना और चोरी की गई रचना में जमीन-आसमान का फर्क है जिसे सही पाठक पकड़ लेते हैं !! आदाब 🙏🙏💜💜🙏🙏

वेदव्यास मिश्र said

रीना कुमारी प्रजापत जी, सटीक विश्लेषण किया है आपने मैम !! चोरी ,चोरी ही रहेगी और ओरिजिनल, ओरिजिनल !! कागज के फूल में कोई खुशबू छिड़क दे तो भला वो कितने देर रहेगी मगर वास्तविक गुलाब क्या कहना !! मोगरे के ओरिजिनल फूल की खुशबू और इत्र में ही जमीन-आसमान का फर्क है. ठीक ऐसी दशा होती है..मौलिक और काॅपी-पेस्ट रचनाकार में अन्तर !! बेहतरीन कमेंट 👌👌 नमस्कार !!

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' जी, एक से बढ़कर एक " निर्लज्ज" और "बेशर्म" कवि पैदा हो रहे हैं भाई साहब !! खूब फल-फूल रही है ये खतरनाक संस्कृति !! फेसबुक को तो गंदा कर डाले हैं इस प्रकार के लोगों ने !! एक तो मेरी रचनायें काॅपी-पेस्ट पद्धति से वहाट्सआप में मेरी रचना भेज-भेजकर एक लड़की ही पटा डाला ..ताज्जुब ये, नाम न बताने की शर्त में अपने गर्लफ्रेंड के कमेन्ट की बारिश में मुझे तरबतर किये दे रहा था पसीने से !! उसकी नजर में तो उसे एक बुक लिखना चाहिए..ऐसी सलाह दे रही थी उसे वो !! यानि एक महान शायर बनकर राज कर रहे थे वो !! ये परम सौभाग्य तो मूल रचनाकार यानि मुझे नहीं मिला है आज तक 😍😍

वेदव्यास मिश्र said

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र जी- शुभाशीष नमन सादर हरि स्मरण !! वो तो आपकी बहुत बड़ी कृपा है जो आपने लिखन्तु डाॅट काॅम का पता दिया !! सच कहूँ तो यहाँ आकर सुकून से हूँ ,आनन्दित भी हूँ और गौरवान्वित भी !! बाकी बातें फिर कभी !! 💜💜

ताज मोहम्मद said

बहुत ही उम्दा कटाक्ष आपने किया है। आजकल यही हो रहा है, खासकर हमारी फिल्म इंडस्ट्री में सब कट कॉपी पेस्ट है। बहुत ही शानदार सादगी भरे तरीके से आपने बहुत बड़ी बात कह दी। बहुत सुंदर प्रस्तुति श्रीमान जी।

वेदव्यास मिश्र said

ताज मोहम्मद जी, आपकी प्रतिक्रिया पाकर निहाल हूँ आभार सहृदय और बहुत-बहुत आदाब भी !! सचमुच, अजीब हास्यास्पद स्थिति है !! हास्यास्पद स्थिति तो तब और ही हो जाती है..जब कोई हमारी ही रचना को अपने ही नाम से चिपका देता है और वो वाहवाही ले आता है और बड़ी ही निर्लज्जता से ये भी कहने में झिझक नहीं करते कि अगर समुद्र से एक बूँद चुरा भी लें तो भला समुद्र यानि आपको क्या फर्क पड़ने वाला !! 😍😁😁😍

वन्दना सूद said

चुरायी पंक्तियों में वो बात ही कहाँ ? जो मन के भाव दर्शा सकें और वह कविता ,ग़ज़ल या आर्टिकल ही क्या जिसमें भाव न दिखे

वेदव्यास मिश्र said

वन्दना सूद जी, आपकी उपस्थिति पाकर मन धन्य हो गया.. रिचार्ज हो गया..सही कहा मैम आपने ..आभार सहृदय 🙏🙏

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