अर्जुन की सेना विवश रही,
अन्याये न्याय पर अब हस रही,
नियति भी अब विवश रही,
जब कुरुक्षेत्र के मैदान में शकुनि की मंशा बस रही,
शकुनि की मंशा बस रही,
अर्जुन की सेना विवश रही,
अर्जुन की सेना विवश रही,
अन्याये का अब नाच चला...जब इक को सौ ने घेर लिया ,
...जब इक को सौ ने घेर लिया ,
सौ वार किये कई जखम दिये,
प्रतिशोध की ज्वाला धधक् रही,
प्रतिशोध की ज्वाला धधक् रही,
अर्जुन की सेना विवश रही,
अर्जुन की सेना विवश रही,
अपने अपनों के विरुद्ध हुए अब दो पालो में बट्टे हुए,
रिश्ते भी तार तार हुए,
नियति भी इन पर हस रही,
नियति भी इन पर हस रही,
चक्रव्यू का जाल बुना ... अभिमन्यु में वध खातिर
मरियादा को कोरवो ने लांघ दिया,
मरियादा को कोरवो ने लांघ दिया,
अर्जुन की सेना विवश रही,
अर्जुन की सेना विवश रही,
महाभारत के युद्ध का एक प्रसंग अपने
शब्दों में व्यक्त किया मैंने.....
राजू कवि.....
सर्वाधिकार अधीन है