लोग भी क्या कमाल करते हैं
जान लेकर मलाल करते हैं
वो नई सुबह का है हरकारा
रोज जिसको हलाल करते हैं
बड़े जाँबाज हैँ सिपाही ये
बेज़ुबाँ बुत पे वार करते हैँ
डूबने वाले को कोसते जी भर
चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं
दंगा तहलका क़त्ल कर्फ्यू कायदे
नित नई साजिश तैयार करते हैं
कांच के आका हुए जबसे खफा
पत्थरो की बेवजह बरसात करते हैं
सिर्फ तकरीर ही औरो के लिए
लोग किसका लिहाज करते हैं
अपने सुख की तलाश में दास
जुर्म सब बेहिसाब करते हैं
यह रचना अमर उजाला मेरे अल्फाज में पहले प्रस्तुत
शिव चरण दास