अपने “मैं” को पहचानने निकला
एक दिन अपने आप को जानने का मन कर आया
अपने “मैं”को पहचानने का ख्याल कर आया
अपनों में ढूँढा
रिश्तों में ढूँढा
धामों तीर्थों में ढूँढा
मंदिर मंदिर माथा टेका
कुछ समझ नहीं जब आया
तब सन्तों के दर्शन को आया
गुरु के दरवाज़े पर जब पहुँचा
तब जाना कि
“मैं”को तो खो देना है
न तन अपना ,न मन अपना
न साँसे अपनी ,न दुनिया अपनी
तो क्यों ढूँढ कर उसे सिर का ताज़ बनाना है ..(to be continued)
वन्दना सूद