हर किसी को नहीं बताते हम अपना ग़म,
जिसे दिल अपना माने बस उसी को सुनाते
हाल -ए -दिल हम।
अपना राज़ अपने तक ही रखते हैं,
बस जो दिल के सबसे क़रीब होता है उसी को
खोलकर दिखाते अपने दिल की किताब सनम।।
हर किसी की तरफ़ नहीं बढ़ाते हम अपने क़दम,
जिसकी फितरत भा जाती है उसी को अपना
बनाते हैं हम।
अपनी कलम में हर किसी के लिए स्याही नहीं भरते,
बस जिसकी तहज़ीब दिल को छू जाती है उसी पर
चलाते है हम अपनी कलम।।
हर किसी पर नहीं करते हैं हम करम,
करते उसी पर जो होता हमारे लिए बड़ा ही अहम।
और फिर बना लेते हैं एक बार जिसे अपना,
फिर साथ नहीं छोड़ते उसका जन्मों - जनम।।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️