हमारे हाथ में बेहद गहरी लकीर हैं
किस्मत से मगर फक्कड़ फकीर हैं
कल भी गुलाम थे और हैं आज भी
प्यादे सारे यहाँ केअब हुए वजीर हैं
ले कटोरा भीख का निकले हैं देखो
गेरुए कपड़े पहन कितने अमीर हैं
मुजरिमों को मिल रहा ईनाम भारी
बन रही इंसाफ की ऊँची नजीर हैं
काटने गर्दन हैं मेरीआतुर यहाँ दास
हर किसी के दफन अब तो जमीर हैंl