अनुशासित
शिवानी जैन एडवोकेटByss
पूरब के आंगन में, स्वर्णिम रथ सजाता,
नियमों की बेड़ी में, बंधकर ही आता।
कभी नहीं आलस, न कोई बहाना,
अपनी दिनचर्या का, हर पल निभाना।
उगता है समय पर, किरणें लुटाता,
तपती दोपहरी में, तेज दिखाता।
पश्चिम की ओर फिर, धीमे ही चलता,
अपने कर्तव्य पथ से, कभी न विचलित होता।
चाहे हो बादल, या हो घटा काली,
अपनी प्रभा से भर देता हर डाली।
दायित्व का सागर, गहरा है कितना,
सूर्य से सीखो, कर्तव्य निभाना नितना।
नहीं ढील बरतता, अपने ही क्रम में,
सिखलाता जीवन को, हरदम उद्यम में।
उसकी गति शाश्वत, उसकी निष्ठा महान,
हम भी चलें ऐसे, रखकर ये ध्यान।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




