आज ऐसा हुआ
कुछ पता न चला
ख़ामोशी ने फिर से
तपाकर तपनमें जला ही दिया
जैसे सूरज तपे
धरती संग सृष्टि जले
जलकर भी उसने
धरोहर को तृप्त कर ही दिया
मैने सोचा बहुत
थोड़ा दर्द है तो ज़रूर
सहकर भी कर्ज़ का
फर्ज निभाना सिखा ही गया
आज बुरे भले
चुप चाप खड़े हैं भले
मौन को बोलना होगा कभी
बदलते वक्तने लड़ना सिखा ही दिया
फर्क ज़माना करता नहीं
लोग करते है जो समझें नहीं
भोलेपन में लूट चुके ग़म नहीं
बर्बादी ने जीना सिखा ही दिया