जीवन कोई ठहरा हुआ सरोवर नहीं,
यह तो अनवरत बहती धारा है,
जहाँ हर बूँद संघर्ष की तपस्या से
स्वयं अपना सागर रचती है।
मनुष्य की यात्रा सीमित नहीं,
वह हर सीमा को लाँघती है,
कभी पर्वत-सा अडिग खड़ा,
तो कभी नभ-सा अनन्त फैलती है।
संघर्षों के तीखे शूल भी
पथ को रोक नहीं पाते,
क्योंकि भीतर की ज्वाला ही
नव सूरज का निर्माण कर जाती है।
अंधकार चाहे जितना गाढ़ा हो,
दीप की एक लौ उसे भेद देती है,
और यही लौ, यही आस्था
अनंत आकाश तक फैली रहती है।
जीवन का अर्थ बाहरी वैभव में नहीं,
बल्कि भीतर की निस्पृह शांति में है,
जहाँ त्याग, करुणा और सत्य
मिलकर आत्मा को अमरत्व देते हैं।
मनुष्य जब स्वयं को लघु समझता है,
तो बंधनों में जकड़ जाता है,
पर जब वह अपने भीतर के ईश्वर को देखता है,
तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड उसकी परिधि बन जाता है।
अतः चलो, पथिक!
कठिनाई से मत घबराना,
क्योंकि हर काँटे की चुभन ही
तेरी आत्मा को पुष्पित करेगी।
और एक दिन—
तेरा संघर्ष, तेरी साधना,
मानवता के इतिहास में
अमर गाथा बन जाएगी।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







