अक़्लमंदी से ले रहे हैं काम अब तक,
बाज़ुओं की ताक़त से पसीना आ सकता है;
मौत से कह दो कि वो आए तो ज़रा जल्दी आए,
वरना कभी भी हमें जीना आ सकता है;
ख़ैरात में मिली है जो उस पर इतना न इतराओ,
जब तक दिख रही है रोटी मुँह के बाहर,
निवाला कभी भी मुँह से छीना जा सकता है..!
कमलकांत घिरी.✍️