मुखड़े पर धर्म,
मन में छल कपट।
परखकर जग को,
है मन बहुत व्यथित।
बातें बड़ी बड़ी,
कर्म न के बराबर।
पाखंडी ये लोग,
करते हैं धर्म का मज़ाक।
साधु के वेश में,
छिपा है व्यापारी।
धर्म के नाम पर,
करते हैं कारोबारी।
मंदिर मस्जिद में,
झूठे वादे करते।
भोले भाले लोगों को,
बहकाते रहते।