निरंतर प्रतीक्षा है
बादलों को गिर चुकी बूंदों के लोट आने की
टहनी को टूट कर गिरे पत्ते के लोट आने की
किनारों को जा चुकी लहरों की
रास्तों को गुजर गये राहगीरों की
पहाड़ों को गुजरती नदियों की
आसमां को टूटे हुए तारों की
तितलियों को उन फूलों की
जो सूखकर बिखर चुके हैं
यादों को बीते हुए समय की
और मुझे तुम्हारे लोट आने की
ये जानते हुए भी की ये असंभव है
निरंतर प्रतीक्षा हे................
साक्षी लोधी